चार युगों का वर्णन

                                                 चार युगों का वर्णन

युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। उदाहरणःसतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग व कलयुग युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकारसे व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई होती है एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय  प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है 

यहाँ पे विश्वा  का अर्थ है अंक 5

 सत्ययुग

  • मनुष्य की आयु - १.००,०००
  • लम्बाई - ३२ फिट (लगभग) [ २१ फिट हाथ ]
  • तीर्थ - पुष्कर
  • पाप - ० विश्वा
  • पुण्य - २० विश्वा 100%
  • अवतार – मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह ( सभी अमानवीय अवतार हुए )
  • कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हिरण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।
  • मुद्रा – रत्नमय
  • पात्र –स्वर्ण का

त्रेतायुग

  • पूर्ण आयु - १२,९६,०००
  • मनुष्य की आयु - १०,०००
  • लम्बाई - २१ फिट (लगभग) [ १४ हाथ ]
  • तीर्थ - नैमिषारण्य
  • पाप - ५ विश्वा 25%
  • पुण्य - १५ विश्वा 75%
  • अवतार – वामन, परशुराम, राम (राजा दशरथ के घर)
  • कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए।
  • मुद्रा – स्वर्ण
  • पात्र – चाँदी का

द्वापरयुग

  • पूर्ण आयु - ८.६४,०००
  • मनुष्य की आयु - १,०००
  • लम्बाई - ११ फिट (लगभग) [ ७ हाथ ]
  • तीर्थ - कुरुक्षेत्र
  • पाप - १० विश्वा 50%
  • पुण्य - १० विश्वा 50%
  • अवतार–कृष्ण , (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण), बलराम।
  • कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव  गोपिओं की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए।
  • मुद्रा – चाँदी
  • पात्र – ताम्र का

कलियुग

  • पूर्ण आयु - ४,३२,०००
  • मनुष्य की आयु - १००
  • लम्बाई - ५.५ फिट (लगभग) [३.५ हाथ]
  • तीर्थ - गंगा
  • पाप - १५ विश्वा 75%
  • पुण्य - ५ विश्वा 25%
  • अवतार – कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर)।
  • कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।
  • मुद्रा – लोहा
  • पात्र – मिट्टी का

  • चौरासी लाख योनियों की व्यवस्था

८४ लाख योनि व्यवस्था कुछ इस प्रकार है


जलचर जीव - ९ लाख

वृक्ष - २७ लाख

कीट (क्षुद्रजीव) - ११ लाख

पक्षी - १० लाख

जंगली पशु - २३ लाख

मनुष्य - ४ लाख

  • चारो युगों की अवधि

  • सत्ययुग की अवधि 17 लाख 28 हजार वर्ष है।
  •  त्रेतायुग की अवधि 12 लाख 96 हजार वर्ष होती है।
  •  द्वापरयुग की अवधि 8 लाख 64 हजार वर्ष होती है।
  •  कलयुग की अवधि 4 लाख 32 हजार वर्ष होती है।

न चार युग को मिला के एक चतुर्युग बनता है। 

ब्रह्मा विष्णु तथा शिव भगवान की आयु 

गीता अध्याय 8 का श्लोक 17

सहस्त्रायुगपर्यन्तम्, अहः,यत्,ब्रह्मणः, विदुः,रात्रिम्,
युगसहस्त्रान्ताम्, ते, अहोरात्राविदः, जनाः।।17।।

 अनुवाद: परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधिवाला और रात्रिको भी एक हजार युगतककी अवधिवाली तत्वसे जानते हैं वे तत्वदर्शी संत दिन-रात्राी के तत्वको जाननेवाले हैं। (17)

नोट:- गीता अध्याय 8 श्लोक 17 के अनुवाद में गीता जी के अन्य अनुवाद कर्ताओं ने ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग का लिखा है जो उचित नहीं है। क्योंकि मूल संस्कृत में सहंसर युग लिखा है न की चतुर्युग। तथा ब्रह्मणः लिखा है न कि ब्रह्मा। इस श्लोक 17 में परब्रह्म के विषय में कहा है न कि ब्रह्मा के विषय में तत्वज्ञान के अभाव से अर्थों का अनर्थ किया है।

(1) रजगुण ब्रह्मा की आयुः-

ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग का है तथा इतनी ही रात्राी है। एक चतुर्युग में 43,20,000 मनुष्यों वाले वर्ष होते हैं) एक महिना तीस दिन रात का है, एक वर्ष बारह महिनों का है तथा सौ वर्ष की ब्रह्मा जी की आयु है। जो सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग की है।

(2) सतगुण विष्णु की आयुः-

श्री ब्रह्मा जी की आयु से सात गुणा अधिक श्री विष्णु जी की आयु है अर्थात् पचास करोड़ चालीस लाख चतुर्युग की श्री विष्णु जी की आयु है।

(3) तमगुण शिव की आयुः-

श्री विष्णु जी की आयु से श्री शिव जी की आयु सात गुणा अधिक है अर्थात् तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख चतुर्युग की श्री शिव की आयु है।

(4) काल ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष की आयुः-

सात त्रिलोकिय ब्रह्मा (काल के रजगुण पुत्रा) की मृत्यु के बाद एक त्रिलोकिय विष्णु जी की मृत्यु होती है तथा सात त्रिलोकिय विष्णु (काल के सतगुण पुत्रा) की मृत्यु के बाद एक त्रिलोकिय शिव (ब्रह्म/काल के तमोगुण पुत्रा) की मृत्यु होती है। ऐसे 70000 (सतर हजार अर्थात् 0.7 लाख) त्रिलोकिय शिव की मृत्यु के उपरान्त एक ब्रह्मलोकिय महा शिव (सदाशिव अर्थात् काल) की मृत्यु होती है। एक ब्रह्मलोकिय महाशिव की आयु जितना एक युग परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का हुआ। ऐसे एक हजार युग का परब्रह्म का एक दिन होता है। परब्रह्म के एक दिन के समापन के पश्चात् काल ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्डों का विनाश हो जाता है तथा काल व प्रकृति देवी(दुर्गा) की मृत्यु होती है। परब्रह्म की रात्राी (जो एक हजार युग की होती है) के समाप्त होने पर दिन के प्रारम्भ में काल व दुर्गा का पुनर् जन्म होता है फिर ये एक ब्रह्मण्ड में पहले की भांति सृष्टि प्रारम्भ करते हैं। इस प्रकार परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष का एक दिन एक हजार युग का होता है तथा इतनी ही रात्राी है।

अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की आयु:-

परब्रह्म का एक युग ब्रह्मलोकीय शिव अर्थात् महाशिव (काल ब्रह्म) की आयु के समान होता है। परब्रह्म का एक दिन एक हजार युग का तथा इतनी ही रात्राी होती है। इस प्रकार परब्रह्म का एक दिन-रात दो हजार युग का हुआ। एक महिना 30 दिन का एक वर्ष 12 महिनों का तथा परब्रह्म की आयु सौ वर्ष की है। इस से सिद्ध है कि परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष भी नाश्वान है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16.17 तथा अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में किसी अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है जो वास्तव में अविनाशी है।



अध्याय 8 के श्लोक 18-19 में वर्णन है कि सब प्राणी दिन के आरम्भ में अव्यक्त अर्थात् अदृश परब्रह्म से उत्पन्न होते हैं तथा रात्राी के समय उसी परब्रह्म अव्यक्त (अदृश) में ही लीन हो जाते हैं।

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