पंचतत्व Panchtatva

                                                       पंचतत्व  Panchtatva

पञ्चभूत Panchtatva (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश (Space) , वायु (Quark), अग्नि (Energy), जल (Force) तथा पृथ्वी (Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए। आत्मा को वैदिक साहित्य में पुरुष कहा जाता है। सांख्य शास्त्र में प्रकृति इन्ही पंचभूतों से बनी मानी गई है।

हिंदू धर्म के अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्व से मिलकर बना है। यह सभी तत्वों को किसी भी पदार्थ के मूल माना गया है। यह पाँच तत्व भूमि, आकाश, हवा, पानी और अग्नि है। शरीर के मरने के बाद यह सभी तत्व प्रकृति में विलीन हो जाते है।


1. भूमि तत्व



इस तत्व को विश्व यानि जगत का हिस्सा कहा जाता है। हमारी पृथ्वी यानि हमारी भूमि इस जगत का एक अहम हिस्सा है। इसी तत्व से हमारा भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है। लेकिन यह तत्व बाकि तत्व के बिना अधूरा है। बाकि तत्व से मिलाने पर इस तत्व में जान आती है।

2. आकाश तत्व



आकाश सभी तत्व में एक अहम तत्व है। यह एकमेव ऐसा तत्व है जिसमे बाकि चार यानि भूमि, हवा, पानी और अग्नि तत्व विराजमान होते है। यह तत्व शरीर के आत्मा का वाहक है। और इस तत्व को महसूस करने के लिए काफ़ी गहन ध्यान की जरुरत पड़ती है।

3. हवा तत्व



हवा यानि वायु के कारण ही अग्नि तत्व की उत्पत्ति होती है। हमारा शरीर भी प्राणवायु हवा द्वारा ही लेता है। इस तत्व के न होने से हमारा शरीर से प्राण निकल सकता है। हमारी पृथ्वी भी श्वास हवा द्वारा लेती है।

4. पानी तत्व



जल यानि पानी से हमारी पृथ्वी का निर्माण हुआ है। जल से ही यह जगत का निर्माण हुआ है। हमारा शरीर भी पानी से ही बना है। एक मानवी शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है।

5. अग्नि तत्व



अग्नि तत्व से ही पानी तत्व का निर्माण हुआ है। हमारे शरीर के लिए बाकि तत्व के साथ यह तत्व का होना भी काफी महत्वपूर्ण है। हमारे शरीर में गरमाहट इस तत्व से ही आती है। शरीर में भोजन को पचाने के लिए यह तत्व काफी उपयोगी होता है।

पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- ये पांच तत्व Panchtatva हैं। शरीर इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित है। इनके अलग-अलग स्थान निर्धारित हैं। माना गया है कि पैर के घुटने तक का स्थान पृथ्वी तत्व प्रधान है। घुटने से लेकर दृष्टि तक का स्थान जल तत्व प्रधान है। कटि से लेकर पेट तक का भाग अग्नि तत्व प्रधान है। वहां से हृदय तक का भाग आकाश तत्व प्रधान है

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