गरुड़महापुराण का विषय वर्णन

 सनातन धर्म के अठारह पुराणों में गरुड़महापुराण (Garuda Mahapuran) का अपना एक विशेष महत्व है।गरूड़ पुराण(Garuda Purana) में विष्णु-भक्ति का विस्तार से वर्णन है।अतः इसे  वैष्णव पुराण भी कहा जाता है।गरुड़ पुराण सनातन धर्म से सम्बधित  एक महापुराण है। यह सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सदगति  प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिये सनातन  धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है। पर इसे  भाव से कभी पढ़ सकते है।   इस पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों के  लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है।



गरुड़ पुराण( Garuda Purana) का विषय 

महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ को भगवान विष्णु के वाहन रूप में सेवा करते है। एक बार गरुड़ जी ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति, यमलोक-यात्रा, भिन भिन  कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा पापियों की दुर्गति से संबंधित अनेक   प्रश्न पूछे। उस समय भगवान विष्णु ने गरुड़ की जिज्ञासा शान्त करते हुए उन्हें जो ज्ञानमय उपदेश दिया था, उसी उपदेश के विस्तृत विवेचन को गरुड़ पुराण कहा गया है।   इस पुराण का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने महर्षि वेद व्यास को प्रदान किया था। तत्पश्चात् व्यासजी ने अपने शिष्य सूतजी को तथा सूतजी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषि-मुनियों को प्रदान किया था।

शास्त्रों के अनुसार गरूड़पुराण में उन्नीस हजार श्लोक कहे गए  हैं, किन्तु वर्तमान समय में उपलब्ध पाण्डुलिपियों में लगभग आठ हजार श्लोक ही मिलते हैं। गरुडपुराण के दो भाग हैं। पहले भाग को पूर्वखण्ड तथा  दूसरे भाग को उत्तरखण्ड कहते है । पूर्वखण्ड में २२९ अध्याय हैं , उत्तरखण्ड में  अध्यायों की सख्या ३४ से लेकर ४९ तक है। उत्तरखण्ड को प्रायः 'प्रेतखण्ड'  भी कहा जाता है। इस प्रकार गरुणपुराण का लगभग ९० प्रतिशत सामग्री पूर्वखण्ड में है और केवल १० प्रतिशत सामग्री उत्तरखण्ड में। पूर्वखण्ड में सब प्रकार के विषयों का समावेश है जो जीव और जीवन से सम्बन्धित हैं। उत्तरखण्ड  मृत्यु के पश्चात जीव की गति एवं उससे जुड़े हुए कर्मकाण्डों से सम्बन्धित है।

पूर्वखण्ड

इस खण्ड को आचार खण्ड भी कहते हैं। इस खण्ड में सबसे पहले पुराण को आरम्भ करने का प्रश्न किया गया है, फिर संक्षेप से सृष्टि का वर्णन है। इसके बाद सूर्य आदि की पूजा, पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नरकों का वर्णन,श्रीहरि-अवतार-कथा,औषधियों के नाम,ब्रह्मज्ञान, आत्मानन्द, गीतासार आदि का वर्णन है।

  उत्तरखण्ड

इस खण्ड को प्रेतकल्प भी कहते हैं।इस खण्ड में पैंतीस अध्याय हैं।इसमें भगवान विष्णु ने गरुण को यह सब भी बताया है कि मरते समय एवं मरने के तुरन्त बाद मनुष्य की क्या गति होती है और उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है। और योनियों से बचने के उपाये बताये  है 

गरुड़ पुराण के अनुसार जिस समय मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, उस समय वह बोलने का यत्न करता है लेकिन बोल नहीं पाता। कुछ समय में उसकी बोलने, सुनने आदि की शक्ति नष्ट हो जाती हैं। उस समय शरीर से अंगूठे के बराबर आत्मा निकलती है, जिसे यमदूत पकड़ यमलोक ले जाते हैं। यमराज के दूत आत्मा को यमलोक तक ले जाते हुए डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी बातें सुनकर आत्मा जोर-जोर से रोने लगती है। यमलोक तक जाने का रास्ता बड़ा ही कठिन माना जाता है। जब जीवात्मा तपती हवा और गर्म बालू पर चल नहीं पाती और भूख-प्यास से व्याकुल हो जाती है, तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए कहते हैं। वह आत्मा जगह-जगह गिरती है और कभी बेहोश हो जाती है। फिर वो उठ कर आगे की ओर बढ़ने लगती है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को यमलोक ले जाते हैं।इसके बाद उस आत्मा को उसके कर्मों के हिसाब से फल देना निश्चित होता है। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से फिर से अपने घर आती है। इस पुराण में बताया गया है कि घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में फिर से प्रवेश करना चाहती है लेकिन यमदूत उसे अपने बंधन से मुक्त नहीं करते और भूख-प्यास के कारण आत्मा रोने लगती है। इसके बाद जब उस आत्मा के पुत्र आदि परिजन अगर पिंडदान नहीं देते तो वह प्रेत बन जाती है और सुनसान जंगलों में लंबे समय तक भटकती रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए।यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन फिर से आत्मा को पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह भूख-प्यास से तड़पती 47 दिन तक लगातार चलकर यमलोक पहुंचती है। गरुड़ पुराण अनुसार बुरे कर्म करने वाले लोगों को नर्क में कड़ी सजा दी जाती है, जैसे लोहे के जलते हुए तीर से इन्हें बींधा जाता है। लोहे के नुकीले तीर में पाप करने वालों को पिरोया जाता है। कई आत्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। किस आत्मा को क्या सजा मिलनी है ये उसके कर्म निश्चित करते है।

नरक का कारण 

प्रेत कल्प‘ में कहा गया है कि नरक में जाने के  अनेकानेक पापो  का कारण  है  । वह परायी स्त्री और पराये धन पर  बुरी दृष्टि रखना   व्यक्ति को भारी कष्ट पहुंचाता है। जो व्यक्ति दूसरों की सम्पत्ति हड़प कर जाता है, मित्र से विश्वासघात  करता है, , ब्राह्मण अथवा मन्दिर की सम्पत्ति को लूटता  है, स्त्रियों और बच्चों का  धन छीन लेता है, परायी स्त्री से गमन  करता है, किसी कमजोर को  को सताता है, भगवान् में विश्वास नहीं करता, कन्या को  बेचता   है; माता, बहन, पुत्री, पुत्र, स्त्री, पुत्रबधु आदि के निर्दोष होने पर भी उनका त्याग कर देता है, ऐसा व्यक्ति प्रेत योनि में अवश्य जाता है और उसे अनेकानेक नारकीय कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी कभी मुक्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को जीवित रहते भी अनेक रोग और कष्ट घेर लेते हैं। व्यापार में हानि, गर्भनाश, गृह कलह, ज्वर, कृषि की हानि, सन्तान मृत्यु आदि से वह दुखी होता रहता है अकाल मृत्यु उसी व्यक्ति की होती है, जो धर्म का आचारण और नियमों को पालन नहीं करता तथा जिसके आचार-विचार दूषित होते हैं। उसके दुष्कर्म ही उसे ‘अकाल मृत्यु’ में धकेल देते हैं।

नरक से बचने के उपाय

गरुड़ पुराण(Garuda Purana) में प्रेत योनि और नरक में पड़ने से बचने के उपाय भी सुझाए गए हैं। उनमें सर्वाधिक प्रमुख उपाय दान-दक्षिणा, पिण्डदान तथा श्राद्ध कर्म आदि बताए गए हैं। गरुड पुराण में कर्मकाण्ड के साथ हमें  ‘आत्मज्ञान’ के महत्त्व को भी समझना चाहिए । परमात्मा का ध्यान ही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। उसे अपने मन और इन्द्रियों पर संयम रखना परम आवश्यक है। इस प्रकार कर्मकाण्ड पर सर्वाधिक बल देने के उपरान्त ‘गरुड़ पुराण’ में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकाण्ड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बताई गई है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ