नालंदा कब लोकप्रिय हुआ? When did Nalanda become popular?
माना जाता है की बुद्ध और महावीर कई बार नालन्दा में ठहरे थे। माना जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी में की थी, जो नालन्दा जिला में स्थित है। बुद्ध के प्रमुख छात्रों में से एक, शारिपुत्र, का जन्म भी नालन्दा में हुआ था।नालंदा पूर्व से अस्थामा तक पश्चिम में तेल्हारा तक दक्षिण में गिरियक तक उत्तर में हरनौत तक फैला हुआ है।
विश्व के प्राचीनतम् नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंँचल में समेटे नालन्दा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन सथ्लों में से एक है। यहाँ पर्यटक हज़ारो गिनती में विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार तथा ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देखने आते हैं। इसके अलावा इसके आस-पास में भी भ्रमण के लिए बहुत से पर्यटक स्थल है। जैसे राजगीर, पावापुरी, गया तथा बोध-गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थल हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में बिताया था। भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहाँ पर ही उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म भी यहीं पर हुआ था।
नालंदा में राजगीर में कई गर्म पानी के झरने है, इसका निर्माण् बिम्बिसार ने अपने शासन काल में करवाया था, राजगीर नालंदा का मुख सहारे है, ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड यहाँ पर है, कई विदेशी मन्दिर भी है यहाँ चीन का मन्दिर, जापान का मन्दिर आदि।
नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई॰ में गुप्त शासक कुमारगुप्त ने की थी। इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सर्मथन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्वविद्यालय को बहुत योगदान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे योगदान मिला था । केवल यहाँ के स्थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरण् विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला। जो कुत्तुबुद्ददीन का सिपह-सलाहकार था।
कब लोकप्रिय हुआ when did it become popular
नालंदा प्राचीन् काल का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र था तथा इसकी स्थापना पांँचवी शताब्दी 450 ई॰ में हुई थी। सातवी शताब्दी ई० में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था तथा उसने यहां की अध्ययन प्रणाली, अभ्यास और मठवासी जीवन की पवित्रता का उत्कृष्टता से वर्णन किया। उसने प्राचीनकाल के इस विश्वविद्यालय के अनूठेपन का वर्णन किया था। जिससे यह दुनिया भर प्रसिद्ध हो गया, पूरी दुनिया से छात्र यहाँ पर पढ़ने लिए आने लगे। दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10,000 छात्र रहकर शिक्षा लेते थे, तथा 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यात्रियों की संख्या ज्यादा थी। गुप्त राजवंश ने प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से निर्मित इन मठों का संरक्षण किया। यह किसी आंँगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्तियों के समान दिखाई देते हैं। सम्राठ अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। हाल ही में विस्तृत खुदाई से यहां संरचनाओं का पता लगाया गया है। यहां पर सन् 1951 में एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई थी। छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी यहां से दो किलोमीटर दूर बडागांव में स्थित है। यहां आने वाले नालंदा के महान खंडहरों के अलावा 'नव नालंदा महाविहार संग्रहालय भी देख सकते हैं।विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातत्वीय संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियांँ और प्रथम शताब्दी का दो जार भी इसी संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांँबे की प्लेट, पत्थर पर खुदाअभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा 12वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।
नव नालन्दा महाविहार
यह एक शिक्षा संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा अनुसंधान होता है। यह एक नया संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आते हैं।
ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल
यह एक नवर्निर्मित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुओं तथा उनकी मूर्ति देखा जा सकता है।
निकटवर्ती स्थल
सिलाव
यह गांँव नालन्दा और राजगीर के मध्य स्थित है। यहां बनने वाली प्रसिद्ध मिठाई खाजा का स्वाद लिया जा सकता है।
सूरजपुर बड़गांव
यहां भगवान सूर्य का प्रसिद्ध मंदिर तथा एक झील है। यहां वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है। एक चैत (मार्च-अप्रैल) तथा दूसरा कार्तिक (अक्टूबर- नवंबर) महीने में। इन दोनोंलोग छठ उत्सव मनाने यहांँ आते हैं। महीनों में यहां प्रसिद्ध छठ त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग छठ उत्सव मनाने यहांँ आते हैं।
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